मेरी हालत है एक बजूके जैसी।
इसे अपने हाथ पैर चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
परिन्दे व जानवर वहाँ किसी के होने के अहसास के चलते-
स्वयं ही भाग जाते हैं।
कुछ दुष्ट उसके सिर पर बैठ कर बीट भी कर देते हैं।
यहाँ कुछ लोग मेरा होना महसूस कर-
स्वयं ही मर्यादित हो जाते हैं।
कुछ दुष्ट बुद्दि नकारते हुये मेरा अस्तित्व-
करते हैं मनमाना व्यवहार,
और मुस्कराकर वक्र दृष्टि से देखते हुये
मुझे मेरे बजूके होने का अहसास करा जाते हैं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
इसे अपने हाथ पैर चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
परिन्दे व जानवर वहाँ किसी के होने के अहसास के चलते-
स्वयं ही भाग जाते हैं।
कुछ दुष्ट उसके सिर पर बैठ कर बीट भी कर देते हैं।
यहाँ कुछ लोग मेरा होना महसूस कर-
स्वयं ही मर्यादित हो जाते हैं।
कुछ दुष्ट बुद्दि नकारते हुये मेरा अस्तित्व-
करते हैं मनमाना व्यवहार,
और मुस्कराकर वक्र दृष्टि से देखते हुये
मुझे मेरे बजूके होने का अहसास करा जाते हैं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा