Wednesday, 4 June 2014

बजूका

मेरी हालत है एक बजूके जैसी। 
इसे अपने हाथ पैर चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
परिन्दे व जानवर वहाँ किसी के होने के अहसास के चलते-
स्वयं ही भाग जाते हैं। 
कुछ दुष्ट उसके सिर पर बैठ कर बीट भी कर देते हैं। 
यहाँ कुछ लोग मेरा होना महसूस कर-
स्वयं ही मर्यादित हो जाते हैं। 
कुछ दुष्ट बुद्दि नकारते हुये मेरा अस्तित्व-
करते हैं मनमाना व्यवहार, 
और मुस्कराकर वक्र दृष्टि से देखते हुये 
मुझे मेरे बजूके होने का अहसास करा जाते हैं।

जयन्ती प्रसाद शर्मा