लोग अक्सर पूंछते हैं मुझसे-
मै कौन हूँ मेरी पहचान क्या है?
मै हो जाता हूँ किंकर्तव्य विमूढ़,
नहीं सोच पाता हूँ-
अपने को परिभाषित करने के लिये क्या करूँ!
किस व्यक्तित्त्व से अपने आपको
सम्बद्ध करूँ।
ना पहचाने जाने का यह दंश-
मुझे सदैब ही त्रस्त कर देता है।
अब जब अपना लिया है तुमने ,
मुझे स्वत: ही पहचान मिल गई है
मै अब बेझिझक, बेलाग उनका हूँ कहकर-
लोगों के प्रश्नों का समाधान कर देता हूँ।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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