Saturday, 12 July 2014

लावारिस

कूड़े के ढेर पर पड़े उस लावारिस शिशु के आसपास-
खड़ा था लोगों का हुजूम
लोग कर रहे थे तरह तरह की बातें।
कोई कोस रहा था उसकी निर्दयी माँ को-
और कोई चिन्तित था उसके भविष्य को लेकर।
उसके वर्तमान की करुण क्रंदन की-
नहीं थी किसी को कोई चिन्ता।
एक सद्य प्रसूता कुतिया सुनकर बच्चे का रुदन-
लोगों के बीच से निकल कर जा पहुँची उसके पास।
जब तक कोई कुछ समझता उसने लगा दिया-
अपना थन उस बच्चे के मुँह से।
बच्चा रोना बन्द कर चुषुक चुषुक पीने लगा उसका दूध-
और कुतिया भोगने लगी मातृत्व का परम सुख।
उस भीड़ में पीछे खड़ी, लोक लाज की मारी बेबस माँ ने देखा-
उस कुतिया को कृतज्ञता से।
वह कर उठी सीत्कार और लगी रोने निशब्द। 

जयन्ती प्रसाद शर्मा   
               

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