Saturday, 28 December 2019

बेरहम जाड़े

अरे ओ बेरहम जाड़े,
उमर से हारों को नहीं सता रे।
चलता नहीं तेरा कुछ जोर सेहतमंद पर,
वे रखते हैं तुझको मुठ्ठी में बंद कर।
नहीं करती उन पर कुछ असर शीतल फ़िज़ा रे।
जब हम जवान थे,
नहीं सींकिया पहलवान थे।
बर्फीली ठंडी हवा,
हमें देती थी मज़ा रे।
जब हम थे तरुणाई के गुमान में,
जाकर शून्य से नीचे तापमान में।
दोस्तों संग हम महफ़िल,
लेते थे सजा रे।
बुढ़ापे में हमें तू क्यों सताता है,
कपड़ो को बेध कर सरकता ही आता है।
खिलने दे बसंत के फूल होने दे मौसम अनुकूल,
हम भी बता देंगे तुझको धता रे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

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