जन गण मन गाते जाओ,
दूध मलाई खाते जाओ।
तुम हो देश के माल देश का,
काहे व्यर्थ में शरमाओ।
बन जाओ बच्चों के सरपरस्त,
बनालो बाल सुधार का ट्रस्ट।
कर चन्दा मिल कर खाओ,
नहीं कहेगा कोई भ्रष्ट।
तुम हो देश के कर्णधार,
तुम्हें देश का भार उठाना है।
खा पीकर ही माल देश का,
अपने कंधे पुष्ट बनाना है।
खींचते रहो माल देश का,
हो जाओ तुम मालामाल।
देश तभी समृद्ध बनेगा,
जब कर्णधार होंगे खुशहाल।
लोगों का क्या है कहने दो,
देते हैं उपालम्भ देने दो।
नारों से नहीं होना विचलित,
उन्हें नारों से भूख मिटा लेने दो।
भूखा-भूख से बिल्लायेगा,
प्यासा भी शोर मचायेगा।
हो जायेगा वह स्वमेव चुप,
जब चिल्ला चिल्ला कर थक जायेगा।
जयन्ती प्रसाद शर्मा.
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