Tuesday, 27 October 2015

यह तुमने क्या मुझसे कह डाला !

यह तुमने क्या मुझसे कह डाला!
परीक्षा प्रवेश से पहले ही मुझको परिणाम बता डाला…
यह तुमने क्या ...।
मैं जा रहा था अपनी राह,
नहीं मन में थी कोई चाह,
पड़ी नजर अचानक तुम पर,
मन कर उठा आह, वाह।
करता मैं तारीफ़ हुस्न की, पेस्तर ही–
हाथ झटक कर, पैर पटक कर तुमने अंजाम बता डाला ....
यह तुमने क्या ...।
मैंने धीरज रख लीना,
कोई जब्र नहीं कीना।
पुनः एक दिन दिखलाई दीं तुम,
हौले से मुस्काई थीं तुम।
तुम्हारे धीरे से मुस्काने ने मुझको प्यार का इल्हाम करा डाला ...
यह तुमने क्या....।
नहीं इजहारे इश्क किया तुमने,
नहीं खुलकर प्यार किया हमने।
नहीं तुमने दिल मुझको दिया,
नहीं मेरा दिल तुमने लिया।
कुछ लेने देने से पहले ही मुझपर बे-ईमानी का इल्जाम लगा डाला.....
यह तुमने क्या .....।
तुम दूर से दर्शन देती हो,
नहीं बतरस का सुख देती हो।
करता मैं मनुहार तुम्हारी, पर तुम-
मेरी तड़पन से सुख लेती हो।
मैं रहा मानता आदेश तुम्हारा फिर भी, नाफ़रमानी का फरमान सुना डाला...
यह तुमने क्या....।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 




                                                            चित्र गूगल से साभार