प्रजा तंत्र का दोष है, तंत्र रहे कमजोर।
शाह झांकते है बगल, हावी रहते चोर।।
बागी-दागी तंत्र को, कर देते कमजोर।
शासन का इन पर नहीं, चल पाता है जोर।।
तुष्टिकरण समाज में, पैदा करता भेद।
बढ़ जाते हैं भेद से, आपस में मतभेद।।
मैं चाहूँ मेरी बने, एक अलग पहचान।
इनका उनका सा नहीं, बनूँ भला इन्सान।।
साईं इस संसार में, सबसे मीठा बोल।
यदि करता हो व्यापार, सबको पूरा तोल।।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
शाह झांकते है बगल, हावी रहते चोर।।
बागी-दागी तंत्र को, कर देते कमजोर।
शासन का इन पर नहीं, चल पाता है जोर।।
तुष्टिकरण समाज में, पैदा करता भेद।
बढ़ जाते हैं भेद से, आपस में मतभेद।।
मैं चाहूँ मेरी बने, एक अलग पहचान।
इनका उनका सा नहीं, बनूँ भला इन्सान।।
साईं इस संसार में, सबसे मीठा बोल।
यदि करता हो व्यापार, सबको पूरा तोल।।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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