Friday 14 December 2018

वह समझ न सकी

वह समझ न सकी वह समझा न सका,
बीत गई उम्र समझते समझाने में।
कुछ ऐसे तल्ख हुये रिश्ते,
वह अब बैठा करते हैं मयखाने में।
           खेल-खेल में ले लिया दर्द,
           अब झेले नहीं झिलता है।
           वे हो गये हैं बेदर्द और रूखे,
           नहीं उनकी फितरत से चैन मिलता है।
नहीं चल सकोगे साथ मेरे,
कह कर दिल उन्होंने तोड़ दिया,
पर मैं हो नहीं सका उनसे जुदा,
उनकी यादों से खुद को जोड़ लिया।
            थोड़ी सी मुझे पिला दे साकी,
            तौर ए मुहब्बत सिखला दे।
            कैसे हो जाता है प्यार किसी से,
            यह राज मुझे भी बतला दे।
उनकी बेरुखी से दिल मेरा जला कोई बात नहीं,
चमक से उसकी कई घर रोशन हो गये है।
कई दिनों से ठंडे पड़े चूल्हे,
उसकी तपिश से गर्म हो गये हैं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

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