जा री बिटिया अपने घर,
यहाँ की छोड़ चिंता-फिकर।
सूझ बूझ से घर बार चलाना,
नहीं समस्याओं से घबराना।
सोच विचार करने से दुश्वारी का
रस्ता आता है निकर ...........।
उलझने नहीं देना रिश्तों की डोर,
कस कर पकड़े रहना छोर।
नहीं करना कभी जिरह,
नहीं पति से व्यर्थ के जिकर..।
सास ससुर का करना सम्मान,
हमसा ही उनको देना मान।
ननदी से रखना सौख्य भाव,
देवर-जेठ बन्धु हैं, अवर-प्रवर ...।
रखना नहीं किसी से द्वेष,
पालना नहीं व्यर्थ का क्लेश।
सामाजिक समरसता से निखरेगी,
कीर्ति रश्मियाँ होंगीं प्रखर ........।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
यहाँ की छोड़ चिंता-फिकर।
सूझ बूझ से घर बार चलाना,
नहीं समस्याओं से घबराना।
सोच विचार करने से दुश्वारी का
रस्ता आता है निकर ...........।
उलझने नहीं देना रिश्तों की डोर,
कस कर पकड़े रहना छोर।
नहीं करना कभी जिरह,
नहीं पति से व्यर्थ के जिकर..।
सास ससुर का करना सम्मान,
हमसा ही उनको देना मान।
ननदी से रखना सौख्य भाव,
देवर-जेठ बन्धु हैं, अवर-प्रवर ...।
रखना नहीं किसी से द्वेष,
पालना नहीं व्यर्थ का क्लेश।
सामाजिक समरसता से निखरेगी,
कीर्ति रश्मियाँ होंगीं प्रखर ........।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
No comments:
Post a Comment