वक्त का फेर है अब मेरी बहुर आई है।
लोग देख कर करते थे नफरत,
कह कर बिल्ली का मूत–
हिकारत से देखते थे।
मैं हो गया हूँ मशरूम,
विशिष्ठ पौष्टिक सब्जियों में–
होने लगी है गिनती।
अब सुरुचि पूर्ण खाने वाले रईसों की–
थाली में स्थान पा गया हूँ।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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