बाज रहे ढोल ढप,
बाज रही चंग।
खेल रहे होरी श्याम,
राधा जी के संग।
संग लिये ग्वाल बाल,
आये नंदलाल।
अंटी में रंग लाये,
मुटठी में गुलाल।
मन में नेह भरौ,
अंखियन में उमंग............... खेल रहे............. ।
कान्हा के मन उठी उचंग,
राधिका पै डारौ रंग।
सात रंग कौ लहँगा भीजौ।
चूनर भीगी पचरंग।
पिचकारी की सम्मुख फुहार से,
चोली भई तंग............... खेल रहे............. ।
नाँच रहे ग्वाल-बाल,
गोपिन को रिझाई रहे।
कर रहे खींच तान-
और शोर मचाय रहे।
ग्वालिनों पर रंग डार,
कर रहे हुरदंग............... खेल रहे............. ।
गोपियों ने घेरे श्याम,
रंग दियौ तन तमाम।
बेकार सब रंग गये,
श्याम श्याम ही रहे।
उनके कारे अंग पै,
चढ़ौ न कोई रंग............... खेल रहे............. ।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
बाज रही चंग।
खेल रहे होरी श्याम,
राधा जी के संग।
संग लिये ग्वाल बाल,
आये नंदलाल।
अंटी में रंग लाये,
मुटठी में गुलाल।
मन में नेह भरौ,
अंखियन में उमंग............... खेल रहे............. ।
कान्हा के मन उठी उचंग,
राधिका पै डारौ रंग।
सात रंग कौ लहँगा भीजौ।
चूनर भीगी पचरंग।
पिचकारी की सम्मुख फुहार से,
चोली भई तंग............... खेल रहे............. ।
नाँच रहे ग्वाल-बाल,
गोपिन को रिझाई रहे।
कर रहे खींच तान-
और शोर मचाय रहे।
ग्वालिनों पर रंग डार,
कर रहे हुरदंग............... खेल रहे............. ।
गोपियों ने घेरे श्याम,
रंग दियौ तन तमाम।
बेकार सब रंग गये,
श्याम श्याम ही रहे।
उनके कारे अंग पै,
चढ़ौ न कोई रंग............... खेल रहे............. ।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
चित्र गूगल से साभार
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