Friday, 5 October 2018

जिनके बिगड़े रहते हैं बोल

जिनके बिगड़े रहते हैं बोल,
बातों में विष देते घोल।
वे सोच समझ कर नहीं बोलते,
नहीं जानते शब्दों का मोल।
आपे में वे नहीं रहते हैं,
जो मुँह में आता है कहते हैं।
वे नहीं जानते छिछली बातों से,
खुल जाती है उनकी पोल।
कुछ लोग बातों का ही खाते हैं,
बातों से वे अपनी साख बनाते हैं।
रहता है समाज में उनका दब दबा,
बोलते हैं जो शब्दों को तोल।
बड़बोलेपन से अक्सर बात बिगड़ती है,
सम्बन्धों में पड़ती दरार और तल्खी बढ़ती है।
चाहत घट जाती है उनकी,
खत्म हो जाता है मेल जोल।
जितना हो सके कम बोलो,
जरूरत से ज्यादा मत बोलो।
नहीं ढोल की पोल खुलेगी,
बची रहेगी इज्जत अनमोल।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

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