सुन चिड़े हो सावधान,
बदल गया है अब विधान।
हम दोनों हैं अनुगामी।
नहीं हो तुम मेरे स्वामी।
तुम मुझको नहीं टोक सकोगे,
अब नहीं मुझको रोक सकोगे।
चाहे कहीं भी मैं जाऊँ,
चाहे किसी के नीड़ रहाऊँ।
तेरी ही होकर नहीं रहूँगी,
जहाँ चाहूँगी मैं विचरूँगी।
मादाओं को नरों ने बहुत सताया,
अब आकर आजादी का सुख पाया।
प्रफुल्ल हैं नारियों के अन्तः करण,
जय हो तुम्हारी न्यायाधिकरण।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
बदल गया है अब विधान।
हम दोनों हैं अनुगामी।
नहीं हो तुम मेरे स्वामी।
तुम मुझको नहीं टोक सकोगे,
अब नहीं मुझको रोक सकोगे।
चाहे कहीं भी मैं जाऊँ,
चाहे किसी के नीड़ रहाऊँ।
तेरी ही होकर नहीं रहूँगी,
जहाँ चाहूँगी मैं विचरूँगी।
मादाओं को नरों ने बहुत सताया,
अब आकर आजादी का सुख पाया।
प्रफुल्ल हैं नारियों के अन्तः करण,
जय हो तुम्हारी न्यायाधिकरण।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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