मैं शराब हूँ,
लोग कहते हैं मैं खराब हूँ।
खराबी मुझमें नहीं,
पीने वालों की सोच में है।
छक कर पीना,
खोना होश में है।
मैं अंगूरी आसव,
घूँट दो घूँट पीने वालों को देती मज़ा।
बे हिसाब पीने वालों को,
देती सजा।
मैं उसके मन बुद्धि पर,
कर लेती अधिकार।
पटक कर उसे किसी नाले में,
करती प्रतिकार।
मैं अपने वशी भूत पर,
बुढ़ापा आने नहीं देती।
उससे पहले ही उसे,
मौत के आगोश में दे देती।
मेरा यह कबूलनामा,
स्वीकार लीजिये।
तौबा छक कर पीने से,
यार कीजिये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
लोग कहते हैं मैं खराब हूँ।
खराबी मुझमें नहीं,
पीने वालों की सोच में है।
छक कर पीना,
खोना होश में है।
मैं अंगूरी आसव,
घूँट दो घूँट पीने वालों को देती मज़ा।
बे हिसाब पीने वालों को,
देती सजा।
मैं उसके मन बुद्धि पर,
कर लेती अधिकार।
पटक कर उसे किसी नाले में,
करती प्रतिकार।
मैं अपने वशी भूत पर,
बुढ़ापा आने नहीं देती।
उससे पहले ही उसे,
मौत के आगोश में दे देती।
मेरा यह कबूलनामा,
स्वीकार लीजिये।
तौबा छक कर पीने से,
यार कीजिये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
6 comments:
आपने कभी शराब पी है?
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 24/03/2019 की बुलेटिन, " नेगेटिव और पॉज़िटिव राजनीति - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
नशा शराब मिएँ होता तो नाचती बोतल ...
क्या बात है सर ,... लाजवाब रचना मजा आ गया ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-03-2019) को "कलम बीमार है" (चर्चा अंक-3286) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शराब इतनी भी नहीं खराब
सही बात।
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