लाख रोकने पर भी निकल जाती है आह,
जब चुभते हैं तेरी यादों के शूल।
तेरी बेवफ़ाई ने करा दिया है अहसास,
वह प्यार न था सिर्फ़ शिगूफ़ा था।
तेरी याद में रो लेते थे,
आँसुओं संग निकल जाता था गुबार।
अब दिल में ही घुमड़ता रहता है।
तेरी बेरुख़ी से भी मिलता है सुकून,
चलो तूने इस क़ाबिल तो समझा।
इल्तिजा है न मुझे देखना उस तरह से,
मैं सह न सकूँगा ताव और मर जाऊँगा।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू
जब चुभते हैं तेरी यादों के शूल।
तेरी बेवफ़ाई ने करा दिया है अहसास,
वह प्यार न था सिर्फ़ शिगूफ़ा था।
तेरी याद में रो लेते थे,
आँसुओं संग निकल जाता था गुबार।
अब दिल में ही घुमड़ता रहता है।
तेरी बेरुख़ी से भी मिलता है सुकून,
चलो तूने इस क़ाबिल तो समझा।
इल्तिजा है न मुझे देखना उस तरह से,
मैं सह न सकूँगा ताव और मर जाऊँगा।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू
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