हे ईश्वर, यह क्या हो रहा है !
जग धू धू कर जल रहा है,
तू बेखबर सो रहा है।
देख यहाँ चल रही है,
कब से नफरत की आँधी।
चढ़ गये इसकी भेंट,
मार्टिन लूथर किंग और गाँधी।
ईर्ष्या की अग्नि,
बढ़ती जा रही है।
गैरों को करके ख़ाक,
अब अपनों को जला रही है।
आज सबसे त्रस्त है नारी,
ममता की मारी।
उसकी सेवाओं का यह सिला,
इंसान उसको दे रहा है।
उसका जन्मा ही बहसी होकर,
बलात्कार का दंश दे रहा है।
माधव ! आपके अवतरित होने को,
यथेष्ठ हो गये हों पाप, तो आइये।
आकर करिये धर्म की रक्षा,
वचन गीता वाला निभाइये।
जयंती प्रसाद शर्मा
जग धू धू कर जल रहा है,
तू बेखबर सो रहा है।
देख यहाँ चल रही है,
कब से नफरत की आँधी।
चढ़ गये इसकी भेंट,
मार्टिन लूथर किंग और गाँधी।
ईर्ष्या की अग्नि,
बढ़ती जा रही है।
गैरों को करके ख़ाक,
अब अपनों को जला रही है।
आज सबसे त्रस्त है नारी,
ममता की मारी।
उसकी सेवाओं का यह सिला,
इंसान उसको दे रहा है।
उसका जन्मा ही बहसी होकर,
बलात्कार का दंश दे रहा है।
माधव ! आपके अवतरित होने को,
यथेष्ठ हो गये हों पाप, तो आइये।
आकर करिये धर्म की रक्षा,
वचन गीता वाला निभाइये।
जयंती प्रसाद शर्मा
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