कहाँ गये मन के कोमल भाव!
वृद्धावस्था जानकर मेरी,
शायद करते हैं मुझसे दुराव.................. कहाँ गये...।
मैं अब भी दुखियों के मन को,
अच्छी बातों से बहलाता हूँ।
उनके टीसते घावों को,
अपने हाथों से सहलाता हूँ।
पर लगता है कर रहा हूँ अभिनय,
नहीं मन से हो पाता जुड़ाव .................. कहाँ गये...।
बच्चों की खिलखिलाहट भरी हँसी,
नहीं मन की कली खिलाती है।
मेरे मन की कुंठा मेरे,
भावों पर हावी हो जाती है।
बहुतेरा मन समझाता हूँ,
पर नहीं हटता उसका प्रभाव .................. कहाँ गये...।
नहीं नैसर्गिक सुषमा से,
मन मेरा हरषाता है।
सुन्दर नारी के दर्शन से,
नहीं तन पुलकित हो पाता है।
दिल में नहीं होती है हलचल,
नहीं प्रेम रस का होता रिसाव.................. कहाँ गये...।
काश ऐसा कुछ हो जाये,
ह्रदय उल्हास से भर जाये।
जाग उठे मन में उमंग,
दूर निराशा हो जाये।
आजायें मन में भावों की बाढ़,
बढ़ जाये नेह रस का बहाव .................. कहाँ गये...।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
वृद्धावस्था जानकर मेरी,
शायद करते हैं मुझसे दुराव.................. कहाँ गये...।
मैं अब भी दुखियों के मन को,
अच्छी बातों से बहलाता हूँ।
उनके टीसते घावों को,
अपने हाथों से सहलाता हूँ।
पर लगता है कर रहा हूँ अभिनय,
नहीं मन से हो पाता जुड़ाव .................. कहाँ गये...।
बच्चों की खिलखिलाहट भरी हँसी,
नहीं मन की कली खिलाती है।
मेरे मन की कुंठा मेरे,
भावों पर हावी हो जाती है।
बहुतेरा मन समझाता हूँ,
पर नहीं हटता उसका प्रभाव .................. कहाँ गये...।
नहीं नैसर्गिक सुषमा से,
मन मेरा हरषाता है।
सुन्दर नारी के दर्शन से,
नहीं तन पुलकित हो पाता है।
दिल में नहीं होती है हलचल,
नहीं प्रेम रस का होता रिसाव.................. कहाँ गये...।
काश ऐसा कुछ हो जाये,
ह्रदय उल्हास से भर जाये।
जाग उठे मन में उमंग,
दूर निराशा हो जाये।
आजायें मन में भावों की बाढ़,
बढ़ जाये नेह रस का बहाव .................. कहाँ गये...।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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