Saturday, 23 July 2016

आशावाद

ओ रवि आज तुम्हें ढक दिया है कुहासे ने 
दे दी है चुनौती तुम्हें गलाने की 
तुम्हारा अस्तित्व मिटाने की 
वह भूल गया है वे दिन 
जब तुमने अपनी तपिश से 
कर दिया था उसे समाप्त प्रायः 
आज तुम पुनः करा दो अहसास 
अपने शक्तिमान होने का 
कितना भी घना हो कुहरा 
छट जायेगा 
नष्ट कर उसका घनत्व 
सूरज निकल आयेगा 
ओ कवि तू भी दिखा दे अपनी सामर्थ्य 
अपनी सशक्त रचनाओं से
सिखा देगा भूले भटकों को 
मानवता से प्रेम 
दूर हो जायेगी उनकी कुंठा 
और विश्व से मिट जायेगा आतंकवाद 
सदा के लिये 

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Friday, 8 July 2016

मानवती तुम आ जाओ

 मानवती तुम आ जाओ!
            तुम रुँठी सपने रूठे,
            कर्म–भाग्य मेरे फूटे।
            बिखर गया मेरा जीवन,
            मन माला के मनके टूटे।
टूटे मनके पिरो पिरो कर,
सुन्दर हार बना जाओ      ...........मानवती तुम  .......... ।
            भावों की लड़ियाँ टूट गयी हैं,
            उपमायें मुझसे रुँठ गयी हैं।
            उलझ गया है शब्दजाल,
            गीतों की कड़ियाँ छूट गयी हैं।
छूटी कड़ियों को मिला मिलूँ कर,
सुन्दर गीत बना जाओ       .........मानवती तुम ............ ।
            नहीं किसी अभिनन्दन की चाह मुझको,
            नहीं किसी के कुछ कहने की परवाह मुझको।
            मेरा अभीष्ट तेरा वन्दन,
            तुमको पाने की चाह मुझको।
दर्शन के प्यासे नैनों की,
आकर प्यास बुझा जाओ         ..........मानवती तुम .............. ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा