ओ रवि आज तुम्हें ढक दिया है कुहासे ने
दे दी है चुनौती तुम्हें गलाने की
तुम्हारा अस्तित्व मिटाने की
वह भूल गया है वे दिन
जब तुमने अपनी तपिश से
कर दिया था उसे समाप्त प्रायः
आज तुम पुनः करा दो अहसास
अपने शक्तिमान होने का
कितना भी घना हो कुहरा
छट जायेगा
नष्ट कर उसका घनत्व
सूरज निकल आयेगा
ओ कवि तू भी दिखा दे अपनी सामर्थ्य
अपनी सशक्त रचनाओं से
सिखा देगा भूले भटकों को
मानवता से प्रेम
दूर हो जायेगी उनकी कुंठा
और विश्व से मिट जायेगा आतंकवाद
सदा के लिये
जयन्ती प्रसाद शर्मा
दे दी है चुनौती तुम्हें गलाने की
तुम्हारा अस्तित्व मिटाने की
वह भूल गया है वे दिन
जब तुमने अपनी तपिश से
कर दिया था उसे समाप्त प्रायः
आज तुम पुनः करा दो अहसास
अपने शक्तिमान होने का
कितना भी घना हो कुहरा
छट जायेगा
नष्ट कर उसका घनत्व
सूरज निकल आयेगा
ओ कवि तू भी दिखा दे अपनी सामर्थ्य
अपनी सशक्त रचनाओं से
सिखा देगा भूले भटकों को
मानवता से प्रेम
दूर हो जायेगी उनकी कुंठा
और विश्व से मिट जायेगा आतंकवाद
सदा के लिये
जयन्ती प्रसाद शर्मा
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