तारे न तुम आना ज़मीं पर,
यहाँ बहुत दुश्वारियां हैं।
कदम कदम पर धोखे हैं,
कदम कदम पर मक्कारियां हैं।
यह मतलब की दुनियाँ हैं,
बिना मतलब कोई नहीं जानता।
रोज मिलते हैं मगर,
कोई नहीं पहचानता।
मतलब के हैं रिश्ते नाते,
मतलब की ही यारियां हैं।
भाईचारे की यहाँ कमी है,
सब आपस में डरे हुए हैं।
नहीं दिलों में है अपनापन,
सब नफरत से भरे हुए हैं।
होती है नफरत की खेती,
यहां नफरत की ही क्यारियां हैं।
कोई नहीं करता,
समाज को जोड़ने की कोशिश।
हर कोई करता है,
दिलों को तोड़ने की कोशिश।
नेता फैलाते हैं भ्रम जाल,
उनमें बड़ी अय्यारियाँ हैं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
यहाँ बहुत दुश्वारियां हैं।
कदम कदम पर धोखे हैं,
कदम कदम पर मक्कारियां हैं।
यह मतलब की दुनियाँ हैं,
बिना मतलब कोई नहीं जानता।
रोज मिलते हैं मगर,
कोई नहीं पहचानता।
मतलब के हैं रिश्ते नाते,
मतलब की ही यारियां हैं।
भाईचारे की यहाँ कमी है,
सब आपस में डरे हुए हैं।
नहीं दिलों में है अपनापन,
सब नफरत से भरे हुए हैं।
होती है नफरत की खेती,
यहां नफरत की ही क्यारियां हैं।
कोई नहीं करता,
समाज को जोड़ने की कोशिश।
हर कोई करता है,
दिलों को तोड़ने की कोशिश।
नेता फैलाते हैं भ्रम जाल,
उनमें बड़ी अय्यारियाँ हैं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
1 comment:
तारे न तुम आना ज़मीं पर,
यहाँ बहुत दुश्वारियां हैं।
कदम कदम पर धोखे हैं,
कदम कदम पर मक्कारियां हैं।
यह मतलब की दुनियाँ हैं,
बहुत-बहुत सुंदर । यथार्थ की बेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीय जयन्ती जी । शंका और घबराहट तथा क्लेश भरी यह दुनिया कुछ तो सम्भल जाए शायद।
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