ये भी आये, वे भी आये,
सभी ही उनके,
जनाजे मे आये।
आये करीबी, आये रकीबी,
रोते थे बिसूरते थे सभी ही।
उनमें से कुछ थे,
मुखौटे लगाये।
कुछ थे देनदार,
कुछ थे लेनदार।
संग वे अपने,
बही खाते भी लाये।
कुछ आये थे निभाने को फ़र्ज,
नहीं थे उनके रसूखों में दर्ज।
वे सिर्फ इंसानियत,
दिखाने को आये।
कुछ थे दबंग कुछ थे धाँसू,
बहाते थे दिखाने को घड़ियाली आँसू।
देख कर पयाम उनका,
कोरों में मुस्कराये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
सभी ही उनके,
जनाजे मे आये।
आये करीबी, आये रकीबी,
रोते थे बिसूरते थे सभी ही।
उनमें से कुछ थे,
मुखौटे लगाये।
कुछ थे देनदार,
कुछ थे लेनदार।
संग वे अपने,
बही खाते भी लाये।
कुछ आये थे निभाने को फ़र्ज,
नहीं थे उनके रसूखों में दर्ज।
वे सिर्फ इंसानियत,
दिखाने को आये।
कुछ थे दबंग कुछ थे धाँसू,
बहाते थे दिखाने को घड़ियाली आँसू।
देख कर पयाम उनका,
कोरों में मुस्कराये।
जयन्ती प्रसाद शर्मा
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-07-2019) को charchamanch.blogspot.in/" > "गर्म चाय का प्याला आया" (चर्चा अंक- 3412) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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