Saturday, 11 April 2020

अब क्या रोना

अब क्या रोना,
होगा वही जो है होना।
नहीं माने बहुतेरा समझाया,
किया वही मन में जो आया।
नहीं माने लोगों से लिपटे,
तुमसे अब लिपटा कोरोना।
रखी नहीं सामाजिक दूरी,
चलाई स्वयं के गलों पर छूरी।
बहुत जरूरी था बचने को,
बार बार हाथ धोना।
नहीं रहे घरों में बंद किया भ्रमण,
बेलाग मिले लोगों से हुआ संक्रमण।
जान के पड़े हैं लाले,
आइसोलेशन में रहोना।
माने नहीं निर्देश लिया मज़ा,
झेलो महामारी की मार भुगतो सजा।
जीवन होगा शेष बचोगे,
मन में धीर धरोना।

जयन्ती प्रसाद शर्मा,दादू ।

4 comments:

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

अत्यंत ही आवश्यक संदेश देती कोरोना जैसी महामारी पर आपकी रचना हेतु साधुवाद आदरणीय ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

एतिहात रखना ही कोरोना का इलाज है।

Jayanti Prasad Sharma said...

सही कहा महोदय।

Jayanti Prasad Sharma said...

बहुत बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी।