अब क्या रोना,
होगा वही जो है होना।
नहीं माने बहुतेरा समझाया,
किया वही मन में जो आया।
नहीं माने लोगों से लिपटे,
तुमसे अब लिपटा कोरोना।
रखी नहीं सामाजिक दूरी,
चलाई स्वयं के गलों पर छूरी।
बहुत जरूरी था बचने को,
बार बार हाथ धोना।
नहीं रहे घरों में बंद किया भ्रमण,
बेलाग मिले लोगों से हुआ संक्रमण।
जान के पड़े हैं लाले,
आइसोलेशन में रहोना।
माने नहीं निर्देश लिया मज़ा,
झेलो महामारी की मार भुगतो सजा।
जीवन होगा शेष बचोगे,
मन में धीर धरोना।
जयन्ती प्रसाद शर्मा,दादू ।
होगा वही जो है होना।
नहीं माने बहुतेरा समझाया,
किया वही मन में जो आया।
नहीं माने लोगों से लिपटे,
तुमसे अब लिपटा कोरोना।
रखी नहीं सामाजिक दूरी,
चलाई स्वयं के गलों पर छूरी।
बहुत जरूरी था बचने को,
बार बार हाथ धोना।
नहीं रहे घरों में बंद किया भ्रमण,
बेलाग मिले लोगों से हुआ संक्रमण।
जान के पड़े हैं लाले,
आइसोलेशन में रहोना।
माने नहीं निर्देश लिया मज़ा,
झेलो महामारी की मार भुगतो सजा।
जीवन होगा शेष बचोगे,
मन में धीर धरोना।
जयन्ती प्रसाद शर्मा,दादू ।
4 comments:
अत्यंत ही आवश्यक संदेश देती कोरोना जैसी महामारी पर आपकी रचना हेतु साधुवाद आदरणीय ।
एतिहात रखना ही कोरोना का इलाज है।
सही कहा महोदय।
बहुत बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी।
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