Sunday, 15 March 2020

एक कतरा आँसू

एक कतरा आँसू टपक गया है,
नहीं चाहते हुए भी वह फफक गया है।
जतन से छिपाये रखा था उसने ग़मे-दिल,
उसकी नादानी से चमक गया है।
आते ही ज़ेहन में ख़याल उसका,
वह बिना पिये ही बहक गया है।
देख कर उसको अपनी गली में,
वह गुलाब  सा महक गया है।
होते ही दीदार सनम का,
वह पंछी सा चहक गया है।
उसकी नज़रों की तल्ख़ी से,
वह सलीब पर लटक गया है।
बेरुख़ी का पत्थर लगते ही,
नादाँ दिल शीशे सा चटक गया गया है।

जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू ।

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