Saturday 21 March 2020

विचारों की जुगाली

पड़ा पड़ा खाम खयाली में
करता रहा विचारों की जुगाली मैं
न उठी कोई लहर 
न बनी कोई बहर
मैं हार थक कर
सो गया मुँह ढक कर

नहीं पड़ा मन में चैन
मैं बहुत रहा बेचैन
किया बड़ा जोड़ तोड़
करी शब्दों की तोड़ फोड़
स्वयं को बहुत हिलाया डुलाया
रह कर मौन, जोर से चिल्लाया।

फिर भी न हुआ कुछ हासिल
मेरा श्रम हुआ फाजिल
अपने न कुछ होने की हुई चिंता
अवसाद ग्रस्त हुआ मन, बढ़ी कुंठा
मैं बहुत शर्मिंदा हुआ
चुल्लू भर पानी में डूबने को मन हुआ।

होने पर अपने हामिला होने का भ्रम
बाँझ करती है अनेक उपक्रम
उदर में लेती है हिलोर
जननांग पर देती है जोर
नहीं होना होता है नहीं होता सृजन
मैं छद्म कवि मार कर बैठ जाता हूँ मन।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू।

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