Sunday, 18 May 2014

चींटी के पर निकल आये हैं

बड़ी मुद्दत के बाद वे मेरे पास आये हैं,
आते ही बोले, ‘चींटी के पर निकल आये हैं’।
मैंने कहा, ‘आप क्यों संतप्त हैं,
उसके निकले पर ईश्वर से प्रदत्त है।
आपको किसी का उत्कर्ष नहीं भाता है,
कोई कुछ पाता है तो आपका क्या जाता है।
वे बोले, ‘आपके मार्गदर्शन को आता हूँ’,
वह जल ना जाये दीपशिखा में सोच कर घबराता हूँ।
शमा की लौ में अगर जल कर वो मरेगी,
पालेगी शलभ धर्म न कुछ अलग करेगी।
कीट पतंगे नहीं बे पर के उड़ते-उड़ाते हैं,
लेकिन आप तो बे पर के उड़ते हैं बे पर की उड़ाते हैं।
पिछले वर्ष आपके बे पर की उड़ाने से,
आपसी सौहार्द बिगड़ गया था
आपकी करतूत से शहर,
फेर में साम्प्रदायिकता के पड़ गया था।
महोदय, मेहरबानी करके-
अपनी आदत में सुधार लाइये
बे पर के उड़ने, बे पर की उड़ाने से-
बाज आइये।


जयन्ती प्रसाद शर्मा