Sunday, 21 June 2020

नादान चीन

नादान चीन,
समझना भारत को बलहीन-
भारी पड़ेगा,
खून के आँसू -
तुझे रोना पड़ेगा।

सन 62 में भाई बनकर,
किया था धोखा।
हम घर सँभालने में लगे थे ,
तूने युद्ध थोपा।
तब परिस्थियाँ भिन्न थीं,
नेतृत्व भिन्न था।
पड़ौसी देशों के व्यवहार से,
मन खिन्न था।

58 वर्षों के अंतराल में,
सब हमको जान गये हैं।
हम सबको पहचान गये हैं।
हम हैं तैयार,
आजा दो दो हाथ करले।

आगे पीछे का चुकता,
सब हिसाब करलें।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Monday, 15 June 2020

लगता है कहीं कुछ गिरा है

धम !
लगता है कहीं कुछ गिरा है
मैं उत्सुक हो बाहर झाँका
लोग देखने लगे मुझे हिकारत से
शायद मैं ही गिरा था उनकी नज़रों से।

क्यों?
जानने को बजह
किया सूक्ष्मतम आत्मनिरीक्षण
न मिलने पर कोई संधि
आश्वस्त हुआ।

लगता है-
भ्रम वश या द्वेष वश
किसी ने यों ही धकिया दिया होऊँगा
या कभी खा गया होऊँगा ठोकर-
बेखुदी में और गिर गया होऊँगा।

फिर भी,
मैं बेगुनाही का जश्न
नहीं मनाऊँगा
मैं होना चाहूँगा दंडित
किन्हीं के विचारों में गिर जाने के लिये।

जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू ।

Wednesday, 3 June 2020

ऐसा कैसे माँ होता है?

ऐसा कैसे माँ होता है?
सदियों से हो रहा उत्पीड़न नारी का,
उस संग बलात्कार होता है।
ऐसा कैसे….?
वह पप्पू नामुराद आवारा,
जिसने पकड़ा था हाथ तुम्हारा।
लक दक वस्त्रधारण कर,
नेताजी संग घूम रहा था नाकारा।
जब होता है उत्कर्ष दुराचारी का,
मन में बहुत दुख होता है।
ऐसा कैसे….?
अब अपने ही घर में हम नहीं सुरक्षित,
शर्मसार अपनों की ही नजरें करती हैं।
छोड़ कर कर्म धर्म अपना,
मेड़ें ही खेत को चरती हैं।
जिंदा ही हमको लाश बनाकर,
अपना बहुत खुश होता है।
ऐसा कैसे….?
माँ अबोध बेटी को आँचल में छिपाकर,
अपनों की कामुक नजरों से बचा रही थी।
अपनी नन्ही बाहों में माँ को भरकर,
बेटी धीरज बंधा रही थी।
उठ माँ अब कर विरोध,
अवरोध से कुंद रूख पापाचारी का होता है।
ऐसा कैसे….?
छोड़ो माँ अब आस बिरानी,
खड्गधार बन जाओ भवानी।
करना कर दो प्रतिरोध शुरू,
नहीं करने दो दुष्टों को मनमानी।
जिसकी अस्मत बची रहती है,
उसको ही आत्मसुख होता है।
ऐसा कैसे….?

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Tuesday, 19 May 2020

आइना

आइना कैसे हैं आप बताता है,
आपका सूरत ए हाल दिखाता है।
वह नहीं बोलता झूँठ,
आप सभ्य हैं या ठूंठ।
आपको सँवरने का,
अवसर दिलाता है।                 
अनदेखी आइने की मत कीजिये,
अपने को सुधारने में उसकी मदद लीजिये।
आइना सच्चा साथी है आपका,
आपको आपकी सच्चाई बताता है।               
बन सँवर कर सामने आइने के आइये,
देख कर अपनी ख़ूबसूरती मुस्कराइए।
दीजिये धन्यवाद आइने को,
वह भी आपके संग मुस्कराता है।               
आइना नहीं करता चमचागीरी,
नहीं करता व्यर्थ की दादागीबीरी।
आप तोड़ दीजिये फिर भी उसका हर टुकड़ा,
अक्स आपका दिखाता है।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Monday, 11 May 2020

माँ की ममता की छांव

जब भी किसी ने मुझे सताया,
माँ ने मुझको गले लगाया।              
जब भी दुखों की धूप से झुलसा, 
माँ ने ममता का छत्र लगाया। 
कभी सिर दर्द से हुआ परेशां,
माँ ने गोदी में रख सिर मेरा दबाया। 
जब भी लगी भूख मुझको, 
माँ ने अपने हाथों से मुझे खिलाया।
जब भी ज़माने ने रुलाया मुझको,
मां ने मुझको धीर बंधाया।
जब से गई है पलटकर न देखा,
सपनों में भी मुझको दर्शन न कराया। 
मेरी कृतघ्नता का दिया दंड, 
मैं तुझको भूला, तूने मुझे भुलाया।

जयन्ती प्रसाद शर्मा           

Saturday, 2 May 2020

तुम थे जीवन में रंग था

तुम थे जीवन में रंग था
उमंग थी उचंग थी
तुम ले गये सब अपने साथ
बस छोड़ गये हो विरासत में शून्य।

इसी शून्य के सहारे
मुझे ज़िन्दगी का बोझ ढोना है
जीवन भर रोना है
भव से पार होना है।

अधिक क्लांत होने पर
चित्त अशांत होने पर
तुम्हारी यादों की पूँजी से
कुछ ख़र्च लूँगी।

मैं बरतूँगी मितव्यता
यह चुक न जाये अन्यथा
और मैं हो जाऊँ
निपट कंगाल।

निवेदन है तुम यादों में आते रहना
मेरा यह अदृश्य धन बढ़ाते रहना
ऐसा न हो तुम मुझे भूल जाओ
मैं भी तुम्हें भूल जाऊं किसी स्वप्न की तरह।

जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू ।

Saturday, 25 April 2020

कोई कब महामारी में नप जाये

पता नहीं आँख कब झप जाये,
कोई कब महामारी में नप जाये।
रुका हुआ जो आँख में आँसू,
पता नहीं कब टप जाये।
वक्त का तकाजा है,
नहीं किसी से मिलो गले।
नहीं मिलाओ हाथ किसी से,
अज़ीज कोई हो कितना भले।
लेकिन रहे खयाल,
न हो किसी का अपमान।
रखें भावना शुद्ध,
मन से करें सम्मान।
हाथ जोड़ कर करें-
नमस्ते दूर से।
चेहरे पर हो सरलता,
दिखें नही मद में चूर से।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Friday, 17 April 2020

समय की फिक्र

जिसको चलने का जनून है,
वह चलेगा।
न मिले मंज़िले मकसूद,
कोई तो मुकाम मिलेगा।
जो पल्लवित हुई है डाली,
उस पर पुष्प खिलेगा।
जो जमा हुआ है आज,
कल को वह गलेगा।
सुबह का निकला सूर्य,
शाम को ढलेगा।
चाँद सितारे भी हैं चमकने का,
उनको भी वक्त मिलेगा।
जो नहीं करते समय की फ़िक्र,
समय उन्हें छलेगा।

जयन्ती प्रसाद शर्मा

Saturday, 11 April 2020

अब क्या रोना

अब क्या रोना,
होगा वही जो है होना।
नहीं माने बहुतेरा समझाया,
किया वही मन में जो आया।
नहीं माने लोगों से लिपटे,
तुमसे अब लिपटा कोरोना।
रखी नहीं सामाजिक दूरी,
चलाई स्वयं के गलों पर छूरी।
बहुत जरूरी था बचने को,
बार बार हाथ धोना।
नहीं रहे घरों में बंद किया भ्रमण,
बेलाग मिले लोगों से हुआ संक्रमण।
जान के पड़े हैं लाले,
आइसोलेशन में रहोना।
माने नहीं निर्देश लिया मज़ा,
झेलो महामारी की मार भुगतो सजा।
जीवन होगा शेष बचोगे,
मन में धीर धरोना।

जयन्ती प्रसाद शर्मा,दादू ।

Tuesday, 7 April 2020

बजरंगी हनुमान

बजरंगी हनुमान,
अतुलित शक्ति अपरिमित ज्ञान।
तुमको जो ध्याता,
तुमसे लगन लगाता।
वह पाता है,
अनायास धन मान।
तुम्हारे संग का सत्व,
पाया राम ने रामत्व।
श्रीहीन किया दशकंधर,
न था जिसके वैभव का अनुमान।
लांघा समुद्र,
जैसे नाला हो छुद्र।
जला दी लंका,
तृणवत मान।
हे बजरंग अष्ट सिद्धि प्रदाता,
हे कपीश नव निधि के दाता। 
मुझको अपनी देउ भक्ति,
हे प्रभु कृपा निधान।
जयन्ती प्रसाद शर्मा



Wednesday, 1 April 2020

करोना को हराना है

करोना गंभीर अति जानो यह श्रीमान,
लापरवाही आपकी ले ही लेगी जान।
ले ही लेगी जान न कमतर इसको आँको,
रहो घरों में बंद निकट भूले नहिं झाँको।
संक्रमितों से बचें न उनसे हाथ मिलाना,
रख सोशल डिस्टेंस हराना है करोना।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Friday, 27 March 2020

कोरोना!

अवांछित है अनामंत्रित है,
सड़कों पर स्वागत नहीं करोना।
नहि भेटहु नहि गहो हाथ,
दूर ही रहोना।
मानव रक्त का प्यासा है,
सामने पड़ोना।
न घुस सके घरों में बलात,
द्वार बंद रखोना।
रक्तबीज सा है दुर्दमन,
इसकी दृष्टि से बचोना।
बचने को इसके दुष्प्रभाव से,
एकांत वास करोना।
संक्रमितों से बचाव एकमेव उपाय,
न काम करेगा टोना या दिठोना।
जयन्ती प्रसाद शर्मा,दादू ।

Saturday, 21 March 2020

विचारों की जुगाली

पड़ा पड़ा खाम खयाली में
करता रहा विचारों की जुगाली मैं
न उठी कोई लहर 
न बनी कोई बहर
मैं हार थक कर
सो गया मुँह ढक कर

नहीं पड़ा मन में चैन
मैं बहुत रहा बेचैन
किया बड़ा जोड़ तोड़
करी शब्दों की तोड़ फोड़
स्वयं को बहुत हिलाया डुलाया
रह कर मौन, जोर से चिल्लाया।

फिर भी न हुआ कुछ हासिल
मेरा श्रम हुआ फाजिल
अपने न कुछ होने की हुई चिंता
अवसाद ग्रस्त हुआ मन, बढ़ी कुंठा
मैं बहुत शर्मिंदा हुआ
चुल्लू भर पानी में डूबने को मन हुआ।

होने पर अपने हामिला होने का भ्रम
बाँझ करती है अनेक उपक्रम
उदर में लेती है हिलोर
जननांग पर देती है जोर
नहीं होना होता है नहीं होता सृजन
मैं छद्म कवि मार कर बैठ जाता हूँ मन।
जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू।

Sunday, 15 March 2020

एक कतरा आँसू

एक कतरा आँसू टपक गया है,
नहीं चाहते हुए भी वह फफक गया है।
जतन से छिपाये रखा था उसने ग़मे-दिल,
उसकी नादानी से चमक गया है।
आते ही ज़ेहन में ख़याल उसका,
वह बिना पिये ही बहक गया है।
देख कर उसको अपनी गली में,
वह गुलाब  सा महक गया है।
होते ही दीदार सनम का,
वह पंछी सा चहक गया है।
उसकी नज़रों की तल्ख़ी से,
वह सलीब पर लटक गया है।
बेरुख़ी का पत्थर लगते ही,
नादाँ दिल शीशे सा चटक गया गया है।

जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू ।

Sunday, 8 March 2020

बरसाइये प्रेम रंग होली में

मिटें क्लेश,
नि:शेष हों विद्वेष।
जला दीजिये होली में दुर्भावना।
उड़ाओ सद्भावना का गुलाल,
सब हों खुशहाल।
न हो किसी को मलाल,
बनाइये सुखों की प्रस्तावना।
न मरें उमंग,
बरसाइये प्रेम रंग।
होयें सब सतरंग,
बनी रहे सद्भावों की संभावना।
करिये गुरुजनों को प्रणाम,
हम उम्र को राम राम ,सलाम।
चरम पंथ का हो विनाश,
होवे प्रेम पंथ की स्थापना।

जयन्ती प्रसाद शर्मा,"दादू"।


Saturday, 7 March 2020

सनम बेवफ़ा

सनम बेवफ़ा!
करते हो वायदा वफ़ा का हर दफा।
पता नहीं तुम भूल जाते हो,
या जान कर करते जफ़ा।
तुम कामयाब तिजारती हो,
बेवफ़ाई में भी देखते होगे नफ़ा।
है बेवफ़ाई फितरत तुम्हारी,
हम जानकर भी करते वफ़ा।
अपनी आदत से मज़बूर हैं हम,
इसी लिये नहीं होते खफ़ा।
ये तुम्हारी आदत है या कुछ और,
अब करनी होगी तुम्हें हर  बात सफ़ा।
जयन्ती प्रसाद शर्मा। 

Sunday, 1 March 2020

ओ राही न सोच मंज़िल की

चंद अश्आर :
वाजिब है तुम्हारा रूंठना
मगर यह तो देख लेते
मुझमें मनाने का-
शऊर है या नहीं।

कहीं तुम वही तो नहीं
जिसके ख़यालों से झनझना उठता हूँ
सनसना उठती है दिमाग़ की पतीली
मन में आने लगता है उफान।

ओ राही न सोच मंज़िल की
चलता रहेगा पहुँचेगा कहीं न कहीं
वैसे भी किस्मत के आगे
किसकी चली है।

मैं नहीं होना चाहता हूँ बेचैन
नहीं उग्र
बस रफ़्ता रफ़्ता यों ही चलती रहे
ज़िन्दगी।

जयन्ती प्रसाद शर्मा, दादू।

Tuesday, 25 February 2020

साँवरौ कन्हैया

साँवरौ कन्हैया, बाँकौ वंशी कौ बजैया,
सब जग मोह लियौ छेड़ी ऐसी तान है।
जमुना बहनौं भूलि गयी गैया चरनौं भूलि गयी,
मस्त भयौ वत्स, भूलौ पय पान है।
दौड़ि दौड़ि ग्वालिन आईं, तये पै रोटी छोड़ि आईं,
सजन बुलाते रहे, भूलीं कुलकान है।
कौन रोकै कौन कूँ सब  छोड़ि भाजे भौन कूँ,
ब्रजवासिन कौ देख ठट ,श्याम मुख आई मुस्कान है।
'दादू ' तुम हू  दौड़ लेउ चरण उनके गहि लेउ,
तुम हू कू तार देंगे कृष्ण करुणा की खान हैं।
जयन्ती प्रसाद शर्मा






Monday, 17 February 2020

बसंत

ठिठुरे थे वो तन गये हुआ शीत का अंत,
सोये से तरुवर जगे आया जान बसंत।
आया जान बसंत हुई रितु अति सुहावनी,
भ्रमर करें गुंजार कलियाँ हुईं लुभावनी।
मोहित करते क्यार विटप लगते निखरे से,
तने हुये वे आज शीत से जो ठिठुरे थे।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Saturday, 8 February 2020

रितु राज बसंत

प्रकृति ने ओढ़ धानी चुनर लीनी,
रितु पति के आव भगत की तैयारी कीनी।
द्रुम दलों ने नव पल्लव धारे,
खेतों में सरसों के पीले फूल खिले न्यारे।
स्वस्ति गान की जिम्मेदारी, कोयल ने लीनी....।
सुरभित शीतल बयार बहेगी,
श्रम हर जन का दूर करेगी।
भर देगी उल्हास मनों में फूलों की सुगंध भीनी....।
कलकल नाद करेगा सरिता का पानी,
हवा संग लहरायेगी प्रकृति की चूनर धानी।
देख कर आयेगी मुस्कान लवों पर जो जाड़े ने छीनी ..।
मचा शोर दिग् दिगंत,
आगये रितु राज बसंत।
ठंडी आह भरे विरहणी खबर नहि साजन ने लीनी।
जयन्ती प्रसाद शर्मा

Tuesday, 4 February 2020

बिगड़ी ताहि बनाइये

दोहे
राह सुगम सबकी करो,पथ को देउ बुहार।
कंकड़ पत्थर बीन कें, कंटक देउ निकार ।।

बिगड़ी ताहि बनाइये, यदि सम्भव है जाय ।
सुखी होयेगी आत्मा, जो इज्जत रह जाय ।।

पिय की छवि ऐसी बसी, और न भावै कोय ।
मन रोवै दै हूकरी, जिस दिन दरश न होय ।।

प्रेम का पथ है अनन्त, नहि इसका है अंत ।
प्रेम बिना है जिंदगी, सुख में लगा हलंत ।।

जयन्ती प्रसाद शर्मा 

Wednesday, 29 January 2020

बसंत गीत

आ गये ऋतुराज बसंत।
गत शिशिर हुआ, विगत हेमन्त…………आ गये .....।
मौसम हो गया खुशगवार,
बहने लगी सुरभित बयार,
कोयल कूक रही मतवाली,
हुई पल्लवित डाली डाली।
गुनगुनी धुप से खिल गये तनमन, हुआ दुखों का अन्त…आ गये...।
पीले फूल खिले सरसों के,
शस्य श्यामला हो गई धरा।
मानो बसंत की आगौनी को,
प्रकृति ने श्रृंगार करा।
हर मन में उत्साह भर गया-
जवान हो गई मन की उमंग…………आ गये.............................. 
कामदेव ने काम किया,
पुष्प शर संधान किया।
फूलों की मोहक सुगंध से-
सम्मोहित संसार किया।
सब प्राणी मदमस्त हो गये नस नस में घुस गया अनंग…आ गये..।
नेह रस की हो रही वृष्टि,
हुई सिक्त सम्पूर्ण सृष्टि।
रति पति ने अधिपत्य जमाया,
अंग अंग में मदन समाया।
कुंजन मे भ्रंग कर रहे गुंजन, आनन्द छाया दिग दिगंत…आ गये .।
जयन्ती प्रसाद शर्मा




Saturday, 25 January 2020

देश के रक्षक

इधर देखो उधर देखो,
हो नहीं जाये हादसा, 
तुम हर तरफ देखो।
देखो पृथ्वी देखो आकाश, 
हर ओर कीजिए दृष्टि पात। 
कर दीजिये अबिलम्ब वार,
देश का दुश्मन अगर देखो।
ओ वीर सैनिक देश के रक्षक, 
कर न दे घात कोई आस्तीन का तक्षक।
कर दो तुरंत नेस्तनाबूद, 
कुछ संदिग्ध अगर देखो। 
हो नहीं जाना तुम हैरान, 
नहीं हो जाना परेशान। 
दोस्ती की आड़ में,
दुश्मनी अगर देखो। 
तुम रहना सतर्क और सावधान,
तिरंगे का हो नहीं जाये अपमान।
सीधा कर देना देश का झंडा, 
कभी झुका अगर देखो।

जयन्ती प्रसाद शर्मा "दादू "
चित्र गूगल  साभार 

Saturday, 4 January 2020

नहीं कोई शरम

मुझे अपने बारे में नहीं कोई भरम,
सत्य स्वीकारने में नहीं कोई शरम।
सुगठित नहीं हैं मेरे विचार,
मैं भावों का पसरट्टा हूँ।
मैं करता हूँ सम्मोहित हूँ मोहन,
आपकी भावनाओं का करता हूँ दोहन।
रगड़ रगड़ कर करता हूँ समरस,
मैं पत्थर का सिल बट्टा हूँ।
सब रहते हैं मुझसे निराश,
पूरी नहीं कर पाता किसी की आस।
ऊँचे पेड़ पर लगा हुआ,
मैं अलभ्य, फल खट्टा हूँ।
हर कोई देता मुझको नकार,
कोई नहीं करता मुझको स्वीकार।
मैं लोगों की नज़रों में,
झांसा हूँ, झपट्टा हूँ।

जयन्ती प्रसाद शर्मा